भारत की आवाज़
ब्यूरो कार्यालय
विमल कुमार के साथ
हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। विधवा महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था।
हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
हरतालिका तीज व्रत के नियम
● हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
● हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
● हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
● हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है।
● हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।
● हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
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पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
● इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
● सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
● इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
● इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
भारत की आवाज़ के सभी पाठकों को हरतालिका तीज व्रत की शुभकामनाएं ! हम आशा करते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।
तीज के दिन मिट्टी के गौरी-शंकर को बनाकर पूजा करें हरतालिका तीज पर मिट्टी से बनाए जाते हैं।
शिव-पार्वतीपूजा में देवी को सुहाग की सभी सामग्री जरूर चढ़ाएं।
भाद्र पद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत सुहागिनें करती हैं।
कई जगह पर इसे तीजा के नाम से भी जाना जाता है।
ये व्रत और पूजा गौरी-शंकर को समर्पित होती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार तीज का व्रत करने वाली सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ये व्रत वह कुंवारी कन्याएं भी करती हैं जिनका विवाह होने वाला है या जिनके लिए वर की तलाश की जा रही है।
ये व्रत करने से उन्हें मनचाहा वर मिलता है।
*तो आइए जानें की हरतालिका तीज की पूजा कैसे की जाती है।*
पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन रखा जाएगा, हरतालिका तीज व्रत।
*हरतालिका तीज पूजन सामग्री।*
हरतालिका तीज पर पूजन के लिए - गीली काली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल, फुलहरा (प्राकृतिक फूलों से सजा), मां पार्वती के लिए सुहाग सामग्री - मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि, श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत के लिए आदि की जरूरत होगी।
*इस विधि से करें पूजा*
हरितालिका तीज का व्रत निर्जला होता है।
सुबह बिना कुछ बोले स्नान करें।
उसके बाद भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराने के लिए अपने पति की मदद लें।
इसके बाद उन्हें फूल, बेलपत्र, धतुरा-भांग आदि चढ़ाएं।
इसके बाद देवी पार्वती की शंकर जी के साथ पुन: पूजा करें।
शाम के समय नए वस्त्र, फूल पत्रों से सजाकर फुलहार बनाए और तब शिव और पार्वती की पूजा करें।
हालांकि बाजार में अब मिट्टी के गौरा पार्वती मिलते हैं, लेकिन आप चाहे तो खुद मिट्टी से गौरी-शंकर को बना कर उनकी पूजा करें।
पूजा में सुहाग की सारी समग्री देवी गौरी को अर्पित करें और उनसे अपने सुहाग और संतान की रक्षा का आशीर्वाद मांगें।
इसके बाद इस मंत्र का जाप करें -
*कात्यायिनी महामाये महायोगिनीधीश्वरी नन्द-गोपसुतं देवि पतिं में कुरु ते नम:।*
*इसलिए किया जाता है हरतालिका तीज व्रत।*
हरतालिका तीज का सर्वप्रथम व्रत देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया था। इस व्रत और देवी की तपस्या को देख कर शिवजी प्रसन्न हो कर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। यही कारण है कि हरतालिका तीज का महत्व बहुत है।
मान्यता है कि देवी पार्वती ने जंगल में जाकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई साल तक तप किया था और उन्होंने ये व्रत बिना पानी लगातार किया था। जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो सुहागिनों के लिए बेहद पुण्य और फलदायी माना जाता है।
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